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  • रोशनी की बात कर अंधेरे में क्यूं रख रहें हैं साहेब...!! दिया तले अंधेरा यूं ही नहीं है साहेब...!!
  • April 04, 2020
  •              रोशनी की बात कर अंधेरे में क्यूं रख रहें हैं साहेब...!!

         दिया तले अंधेरा  यूं ही नहीं है साहेब...!!
     
        सर्बिया क्यों भेज दिए मेडिकल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट्स…??
     
    सर्बिया से ज्यादा देश के कोरोना पीडितों को मेडिकल इक्विपमेंट्स की जरूरत है प्रधानमंत्रीजी..!!

    कोरोना को खेल मत समझिए, प्रधानमंत्रीजी, मानवता के लिए अब तक की सबसे डरावनी घटना है..!!

    दुनिया की बिरादरी जब आपसे कोरोना पर टेस्ट का डेटा मांगेगी तो क्या दिखाएंगे खाली स्लेट ??

    क्या है वो राज जो  छिपाना चाहते हैं आप...??

    जिन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहां है...!!
     
      देश में कई जगह डॉक्टरों को सुरक्षा उपकरण के बजाय एक करोड़ के मुआवजे और प्रैक्टिस का लाइसेंस रद्द करने की धमकी दे कर काम कराया जा रहा है. होते-होते 52 से ज्यादा डॉक्टर्स और नर्सिंग स्टॉफ देश में संक्रमित हो चुके हैं. सभी जानते हैं कि एक स्वास्थ्यकर्मी के संक्रमित होने से उसके परिवार समेत जाने कितने औऱ लोगों के संक्रमित होने का खतरा बढ़ जाता है. लेकिन पर्सनल प्रोटेक्शन इक्विपमेंट्स की कमी पर आप मीडिया में भी बात नहीं होने दे रहे हैं प्रधानमंत्रीजी. क्या आपकी सरकार इस दर्जे की लापरवाह या नासमझ है कि उसे चाइना के तजुर्बे से भी नहीं समझ में आ रहा है कि कोरोना से निपटने के लिए क्या तैयारी की जानी चाहिए. देश में बहुत से डॉक्टर मोमजामे का सूट पहन कर कोरोना संक्रमित लोगों के इलाज़ में जुटे हुए हैं। और हमारी दरियादिल सरकार ने सर्बिया को मेडिकल पीपीई भेज दिए. अगर वो बैन किए गए पीपीई नहीं थे तो भी कोरोना से लड़ने के लिए काम आने वाले प्रोटेक्टिव गियर्स तो थे ही. ऐसी क्या मजबूरी थी जो जनता की नज़र चुरा कर वो मेडिकल उपकरण भेज दिए गए जिनकी यहां बेतरह जरूरत थी.
     
    लॉकडॉउन के बाद वाले हफ्ते में 90 टन की मेडिकल सामग्री (जिसमें पीपीई और अन्य चिकित्सा सामग्री है) लेकर सर्बिया की राजधानी बेलग्रेड में कार्गो विमान पहुंचता है. सोशल मीडिया में संयुक्त राष्ट्र की सर्बिया शाखा के ट्वीट के बाद पता चलता है कि भारत से  मेडिकल उपकरणों की दूसरी खेप पहुंची है. वहीं  आपके स्वास्थ्य मंत्रालय को  इसके बारे में कोई जानकारी नहीं थी . जानकारी हो तो कैसे, केंद्रीय स्वास्थ्यमंत्री घर में बैठ कर पत्नी के साथ क्वारंटाइन में दापत्य दायित्व वहन करने में जुटे हुए हैं. लूडो खेल रहे थे या मटर छील रहे थे. 
     
           प्रधानमंत्रीजी, आपकी औऱ ग्रहमंत्रीजी की मर्जी के बगैर मुल्क में पत्ता तक नहीं हिलता, ऐसे में आपकी गैर जानकारी में मेडिकल इक्विपमेंट्स का महादान कैसे जा रहा था. जबकि डीजीएफटी यानि डॉयरेक्टर जनरल ऑफ फॉरेन ट्रेड ने 25 फरवरी को और फिर 19 मार्च को नोटफिकेशन जारी कर सर्जिकल, प्रोटेक्टिव गियर्स, वेंटिलेटर्स वगैरह मेडिकल सामग्री के निर्यात पर रोक लगा दी थी. अब ये कहा जा रहा है कि शिपमेंट में सिर्फ लेटेक्स ग्लोव्ज थे. जिन पर किसी तरह की रोक नहीं है. सहायता तो कोरोना संक्रमण से निपटने के लिए ही भेजी गई है प्रधानमंत्रीजी. सर्बिया में कोरोना से लड़ने में रूस भी बहुत दिलचस्पी ले रहा है. सब जानते हैं कि वहां राष्ट्रपति ने संसद को विश्वास में लिए बगैर सैनिक शासन लागू कर दिया है.  यहां भी विपक्ष से बात किए बगैर लॉकडॉउन घोषित कर दिया गया. ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि सरकार ने आखिर क्यों मेडिकल मदद की खेप को सर्बिया जाने दिया. यही नहीं इसी 14 मार्च को द जेरुशलम पोस्ट लिखता है कि एक्सपोर्ट बैन के बावजूद इंडिया इजरायल को ड्रग सप्लाई करता रहेगा. जब इजरायल के स्वास्थ्य मंत्रालय से मीडिया ने एन 95 मास्क के बारे में पूछा तो मंत्रालय ने कोई साफ जवाब नहीं दिया.
     
    प्रधानमंत्रीजी, इतने भोले नहीं हैं आप, ना ही इतने नादान, इसके पहले भी आप चाइना की मदद में खड़े हो गए थे, जबकि वहां कोरोना से केवल तीन लोगों की मौत हुई थी. दानवीर सरकार ने तब भी मेडिकल एक्विपमेंट्स की बड़ी खेप भेजी थी. ये बात अलग है कि अब चाइना उतनी गर्मजोशी दिखाने को तैयार नहीं है.
     
    आपके भोलेपन पर देश फिदा है. वजह यही है कि आपके एक एक शब्द पर भरोसा करता है. उसे भरोसा है कि आप देश को एकता के सूत्र में पिरोने की जरूरत के मुताबिक ही अगला रविवार दिया, रोशनी, टॉर्च, मोमबत्ती या दिया जलाने की बात कर रहे हैं. लेकिन प्रधानमंत्रीजी, दिया तले अंधेरा है. यहां ये बताना जरूरी है कि आपकी सरकार पूरे देश से हकीकत छिपाने की कोशिश कर रही है. जबकि आप इस मौके को को भी चुनावी हथकंडे की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं. 
    दरसल आप खुद नहीं बताना चाहते हैं कि अपनी चौंकाने वाली आदत के मुताबिक बगैर पूरी तैयारी के लॉकडॉउन लागू तो कर दिया लेकिन हालात की गंभीरता को अब तक नहीं समझे हैं.
     
    आप अगर कोरोना को खेल नहीं समझ रहे हैं तो जनधन खातों में पहुंचाए गए महज़ पांच सौ रुपए के लिए जिस कदर बैंकों में भीड़ जुटेगी, कल्पना करना भी मुश्किल है.राजधानी दिल्ली समेत देश के हर कोने में निचले तबके के मेहनतकश मजदूर अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ पिछले दस दिनों से घरों में बंद कर दिए गए हैं ताकि वो भले ही भूख से मर जाएं लेकिन कोरोना से नहीं. क्योंकि कोरोना छोटे-बड़े आदमी में भेद नहीं करता. औऱ भूख से मौत सरकारी रिकॉर्ड में कभी साबित नहीं हो पाती. क्योंकि भूख दूसरी बीमारियों की आड़ में इंसान की जान लेती है.
    माफ कीजिएगा, झूठी शोहरत के लिए आप कोरोना से मौत को भी दूसरी बीमारियों से मौत साबित करने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं प्रधानमंत्रीजी...
    आपके पास तो भुज को दोबारा खड़ा करने का तजुर्बा भी है प्रधानमंत्रीजी, लेकिन अब क्या बदल गया है. अब या तो आप अपनी ही सूझबूझ के इतने कायल हो चुके हैं कि आप अतिरिक्त आत्मविश्वास से लबरेज़ हैं या फिर आप हर संकट को अपने फायदे के लिए भुनाने में मसरूफ हैं.
     
    हैरानी की बात ये है कि आप सारे उपदेश उस जनता को दे रहे हैं जो बेरोजगारी और भूख से तड़प रही है. उसे बता रहे हैं कि थाली औऱ ताली बजाईए ताकि दुनिया को पता चल सके मोदी भूखी जनता के बीच अब भी उतने ही लोकप्रिय हैं, जितना 2014 में थे.
     
    प्रधानमंत्रीजी, जिन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहां है ?  कहां हैं आपकी पार्टी के वो लोकसभा के 303 सांसद, राज्यसभा में 84 सांसद, और देश भर में बीजेपी विधायक, उनको आपने किस काम में लगाया है ? उनसे आपने अभी तक कोई सवाल पूछा है?  क्या उन्हें सिर्फ संसदीय भत्ते औऱ वेतन क्वारेंटाइन में रहने के लिए दिए जा रहे हैं ? यही वो जनसेवा है जिसके लिए आप और आपकी पार्टी ने जनता को ख्वाब दिखाए थे ? आपके मंत्री अंताक्षरी खेल रहे हैं, मटर छील रहे हैं. लूडो खेल रहे हैं और पूरी बेशर्मी के साथ सोशल मीडिया में फोटो डाल रहे हैं. जबकि देश की जनता सड़कों पर राशन और दवाई के लिए भटक रही है. आप देश के डेश के डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों से जिस शहादत की उम्मीद कर रहे हैं, क्या वैसी उम्मीद अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों से की. आपने उन्हें क्या निर्देश दिए. आप जनता को नैतिकता का पाठ पढ़ा रहे हैं लेकिन अपने दामन में झांकिए प्रधानमंत्रीजी, आप योगा करने के वीडियो सोशल मीडिया पर डाल रहे हैं, ये आपकी सरकार की सोच का परिचायक है...
     
    आपको मालूम है ?? जितने लोगों की मौत कोरोना से अब तक हुई है, उससे थोड़े ही कम लोगों की भूख औऱ पुलिस की मार से जान गई है इन दिनों. लेकिन आपको फर्क नहीं पड़ता. क्योंकि तानाशाह को अपने अभिनय औऱ जनता की मासूमियत पर पर पक्का भरोसा है..
     
    आप कोरोना संक्रमण को अपनी छवि बनाने के एक अवसर की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं. अगर ये बात गलत है तो आपने रोशनी करने के संदेश के साथ देश को माली मदद देने की योजना के बारे में साफ साफ क्यों नहीं बताया. लॉकडॉउन में उनको खाना कैसे मिलेगा, उनको आपने दवाईयों की उपलब्धता पर बात क्यों नहीं की. आपने डॉक्टरों को उनकी सुरक्षा के लिए दिलासा क्यों नहीं दिया. आपने जमाखोरों को कड़ी चेतावनी क्यों नहीं दी.
     
    यही नहीं, पने कोरोना जैसी मानवीय त्रासदी के वक्त हिंदू-मुसलमान करने वालों को फटकार क्यों नहीं लगाई. आपने ये जानना भी जरूरी नहीं समझा कि तबलीगी जमात मरकज के लोगों को बस पास जारी नहीं करने के लिए जिम्मेदार कौन था. आप जानते है कि नफरत के इस व्यौपार में किसका मुनाफा हो रहा है. कस्बे-कस्बे, गांव-गांव अविश्वास के माहौल का खामियाज़ा स्वास्थ्यकर्मियों और सरकारी महकमें के लोगों को भुगतना पड़ रहा है. गांव-गांव में फैल रहे नफरत के वायरस की मौजूदगी में घर घर घुस कर कोरोना संक्रमण तलाशना कितना कारगर होगा.
    और सबसे बड़ी बात ये है कि एक सौ तीस करोड़ के देश में  अभी तक कोरोना संक्रमण के एक लाख  परीक्षण भी नहीं हो पाए हैं. समझा जा सकता है कि सरकार संक्रमण के रिपोर्टेड मामले कम से कम दिखाने को समझदारी समझ रही है. ये जानते हुए भी कि कोरोना से मौत और भूख से मौत में बड़ा फर्क है. भूख से मौत को बीमारी से मौत बता कर प्रशासन छुट्टी पा लेता है. लेकिन कोरोना एक के बाद एक नया शिकार तलाश लेता है. ऐसे में आपने जनवरी माह से जानकारी मिलने के बाद भी कोई तवज्जो नहीं दी क्योंकि आप ट्रंप के चुनाव में उनकी मदद के लिए गुजरात बुलाना चाहते थे. इसके बाद आपको मध्यप्रदेश की सरकार गिरानी थी. आपने सत्ता की हवस में लाखों देशवासियों की जान खतरे में डाल दी है. इस दौरान संक्रमण भी बढ़ा औऱ तैयारियां भी नहीं की गई.
     
    सच्चाई ये है कि एक सौ तीस करोड़ लोगों के देश में संक्रमण के परीक्षण के लिए किट और जरूरी साधन उपलब्ध नहीं है. कोरोना गांवों में घुस चुका है, जबकि जरूरत भर के मेडिकल संसाधन राज्यों की राजधानी तक भी नही पहुंच पा रहे हैं. 
    सिर्फ बिहार का उदाहरण ही काफी है. 12 करोड़ के राज्य ने सिर्फ सौ वेंटिलेटर मागं थे लेकिन आपकी सरकार एक भी मुह्य्या नहीं करवा सकी. जबकि वहां आपकी अपनी ही गठबंधन सरकार है. 
         प्रधानमंत्रीजी, आने वाले वक्त में वेंटिलेटरों की बड़ी तादाद में जरूरत होगी. लेकिन आप इनकी उपलब्धता का कोई रोड मैप बताने की स्थिति में भी नहीं है. यहां तक कि  नीति आयोग की बैठक में पता चला है कि सरकारी और गैर सरकारी अस्पतालों में 20 से 30 हजार वेंटिलेटर उपलब्ध हैं जो मरम्मत कर के दोबारा काम के लायक बनाए जा सकते हैं. इसके लिए कौन जिम्मेवार है. क्योंकि वेंटिलेटरों की कमी से देश भर में हजारों मौत होती हैं. फिर इन्हें मरम्मत क्यों नहीं कराई जाती.
             औऱ इन सबसे बड़ी बात ये है कि आप कोरोना संक्रमण से जुड़ी खबरों पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के जरिए सरकार का नियंत्रण क्यों करना चाहते हैं. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश से साफ है कि अपुष्ट आंकड़े पेश करने पर मीडिया पर पाबंदी लगाई गई है. लेकिन याद रखिए अदालत के निर्देश के ये माने नहीं है कि सरकार की नाकामी को उजागर करने पर कोई पाबंदी है. 
    प्रधानमंत्रीजी, आप महामारी का इस्तेमाल अपने हर फायदे के लिए करना चाहते हैं, लेकिन जनहित के अपने योजना सामने लाने की कोशिश करते तो और बेहतर होता. हमेशा दूसरों के नुकसान से नफा कमाना अच्छा व्यौपार नहीं होता. प्रधानमंत्रीजी. खासकर जब पूरा देश खतरे में है और आप देशभक्ति का दावा कर सत्ता में काबिज़ हैं....
    अंशुमान त्रिपाठी
    चलते-चलते:  कृपया टॉर्च, रोशनी, मोमबत्ती या दिया जलाने की इटली की नकल की कोशिश यहां ना करवाएं, क्योंकि हमारे पॉवर ग्रिड इतने मजबूत नहीं कि आपके प्रचार का ये स्टंट झेल सकें....
     
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