भोट के बदले भैक्सीन की सियासत
बिहार चुनाव पर विशेष व्यंग्य लेख
- अंशुमान त्रिपाठी
मोदीजी कोह रहे हैं- भोट के बदले भैक्सीन लगाएंगे, लेकिन कहां लगाएंगे, कइसे लगाएंगे, किसको-कौन सी, कब लगाएंगे, और पईसा कौन चुकाएगा, ये चुनाव बाद बताएंगे
मोदीजी बड़े दिल वाले हैं, दिल खोल कर बांटते हैं. लेकिन अपनों-अपनों को,.. बाकी सबको डांटते हैं. पिछले जनम का बिहारी मानते हैं खुद को, लेकिन रउआ सब उन पर भरोसा ही नहीं करता है, वरना पिछली बार ही सवा लाख करोड़ का खरबूजा कटने वाला था औऱ सब में बराबर बंटने वाला था. मोदीजी खुद बिहार की बोली लगाए थे..
मोदी बाइट-
मोदीजी की गलती नहीं है, ना ही एनडीए की, गलती थी तो डीएनए की- नीतीश बाबू के . सुशासन बाबू बीचे में भांजी मार दिए. वरना मोदीजी बिहार को गुजरात बना दिए होते, और गोधरा.. का जिक्र नहीं करेंगे. वो आप देख समझ लीजिए. तो हम बात कर रहे थे डीएनए की, मोदीजी नीतीस के डीएनए को लेकर शुरुएसे डॉउटफुल रहे.
मोदीजी को डीएनए पर डॉउट हुआ 2009 में जब नीतीश ने उन्हें प्रचार के लिए बिहार आने से मना कर दिया, लेकिन जब दबाव बढ़ा तो नीतीश खुदै बीजेपी के प्रचार में लुधियाना पहुंच गए. मोदीजी भी छोटे खिलाड़ी नहीं. सो बिहार में बाढ़ पीड़ितों की मदद की बात लीक कर दी. बस नीतीश का पारा चढ़ गया. जो बीजेपी नेताओं के लिए बढ़िया-बढिया छप्पन भोग बनवाए वही नीतीस डीनरवा कैंसिल कर दिए औऱ महादलितों में बंटवा भी दिए. फिर 2013 में मोदीजी को पीएम कैंडिडेट बनाए जाने पर तो नीतीसजी ऐसे टिपुरे कि एनडीए से ही दामन छुड़ा लिए. क्योंकि तब खुद में पीएम की छवि देख रहे थे. मोदीजी इस बार इनका डीएनए दुरुस्त करने के लिए भैक्सीन तैयार करवाए हैं- . मोदीजी चिराग नामका भैक्सीन तैयार करवाए हैं, तो लालूजी तेजस्वी नामका भैक्सीन. अब दूनों भतीजा भैक्सीन ले कर चचा के पीछे दौड़ रहा है.चचवा आगे आगे तो दूनों भतीजा भैक्सीन लेकर पीछे-पीछे, नीतीशजी को रस्तै नहीं बुझा रहा है. एक के हाथ में सूई.. तो एक के पास सूजा..आगे-आगे खुद..पीछे पीछे दूजा.. भैक्सिनवा लिए-लिए. चिराग भैक्सीन खुद को मोदी का हनुमान बता रहा है.मर्यादापुरुषोत्तम मोदीजी नीतीश को सीने से चिपटाए हैं. डरो मत, कुछ नहीं होगा बत्स. नीतीश मने कि मुन्ना बाबू ( बालपन में मुन्ना पुकारा जाता था.) मुन्ना समझ नहीं पा रहे हैं कि जाएं तो जाएं कहां, करें तो करें क्या. पिछली बार तो लालू के चरण पर गिर गए थे. ये हम नहीं कह रहे हैं, अपने तेज प्रताप बाबू बताते हैं-पापा के पैर पकड़ लिए थे. मनेकि लालूजी को पुराना जवानी के दिनों का दोस्ताना याद आ गया था. भोला बाबू को बुला के कहे – ए भोला बाबू ज़रा दोस्ताना का गाना तो बजा दो-
बने चाहे दुश्मन.. जमाना हमारा..
नीतीशजी के पास अपना भोट बैंक था नहीं, सुशासन बाबू की छवि से चुनाव जीतना पॉसीबल नहीं था. सो सीएम पद के बदले राम-लक्ष्मण यानि तेजप्रताप-तेजस्वी को राजनीति सिखाने तैयार हो गए. बशिष्ठ जी की तरह ले गए और चारौ दिन ट्रेन्ड नहीं किया. फिर पलटी मार के मोदीजी की गोद में बैठ गए. लालूजी को अंगूठा दिखा दिए और लगे अंगूठा चूसने. वो दिन था कि लालूजी के जेल की भूमिका तैयार हो गई. लेकिन नीतीश बाबू चंद्राबाबू नायडू, ममता बनर्जी, नवीन पटनायक और महबूबा मुफ्ती से कोई सबक नहीं लिए. ना ही अपने अहंकार में मोदीजी का डीएनए समझ पाए
जबकि इस बार सीटों की सौदेबाजी से मोदीजी समझ गए कि इनके डीएनए में अब भी सुधार नहीं आया. तब मोदीजी खुद ही बिहार में प्रचार की कमान सम्हाल लिए. नीतीश अभिए से पोस्टर से गायब. पटना से ले कर सीमांचल तक मोदीजी के होर्डिंग बैनर लग गए. लग रहा है कि जैसे मोदिएजी ही बिहार के मुख्यमंत्री बनेंगे.औऱ नीतीशजी वनवास जा रहे हैं. पिछली बार मोदीजी सवा लाख करोड़ की नीलाम बोली लगाए थे, इस बार निर्मला बहन आईं. भोट के बदले भैक्सीन का वादा कर गईं... लेकिन कोई समझ नहीं पा रहा है कि भोट के बदले भैक्सीन लगेगा तो लगेगा कहां, कैसे लगाया जाएगा, किस जगह लगाएंगे, कौन सी लगाएंगे, किसको-कैसी लगाएंगे, कब लगाएंगे और पईसा कौन चुकाएगा. ये सब चुनाव बाद बताया जाएगा.
भई समझिए ना..किसको सूई लगाना है, किसको घोंपना है, किसको ठोंकना है, सब पहले से तय होगा.. कैसे तय होगा...
ये हम बता रहे हैं आपको... एक डिस्ट्रीभ्यूशन कमेटी बना है. जो तय कर रहा है कि पार्टी के आधार पर लगेगा कि जाति या धर्म के आधार पर लगेगा. फॉरवर्ड को भैक्सीन किस जगह लगाया जाएगा तो बैकवर्ड को कहां घोंपा जाएगा. समझ रहे हैं ना किसको बाजू में लगेगा तो किसको बैक में घोंपा जाएगा... दलित- महादलित को कौन सा भैक्सीन कैसे ठोंका जाएगा. ई सब के लिए मनुस्मृति कंसल्ट किया जा रहा है. कि कौन कहां से पैदा लिया था, उसी हिसाब से भैक्सीन लगाया जाएगा. अगर धर्म के आधार पर तय हुआ तो जान लीजिए कि किसको सुई लगेगा किसको सूजा. कौन आगे भागेगा, कौन पछुआवेगा.
जहां तक विचारधारा का सवाल तो आईडियॉलजी के आधार पर तय़ किया जाएगा कि कॉमरेडों को चीनी या रूसी भैक्सीन तो बीजेपी और आरएसएस वालों को अमेरिका-इज़रायल वाली. वहीं भक्तों के लिए क्लोरोनिल हरिद्वार वाली.
यहां संविधान का भी ध्यान रखने की मांग की जा रही है कि आरक्षण के आधार पर लगाया जाए. तो संघ परिवार आर्थिक आधार पर आरक्षण पर मंथन कर रहा है. पिछली बार भागवतजी बोल दिए थे, सो बिहार का समीकरण गड़बड़ा गया. इस बार हिंदू-मुसलमान सब को हिंदू बताए दे रहे हैं. बाद की बाद में देखी जाएगी.
वहीं मोदीजी के व्यौपारी दोस्त कुछ अलगै फार्मूला बतिया रहे हैं. वो किश्तों में बेचने की स्कीम बना रहे हैं तो कुछ बाइ वन गेट वन का फार्मूला सुझा रहे हैं. तो कुछ कह रहे हैं कि भैक्सीन के साथ बोनस भी दिया जाए. कुछ कह रहे हैं कि भैक्सीन के साथ एनिमा फिरी में. उधर मोदीजी बड़े बड़े उद्योगं और कॉर्पोरेट के लिए हंड्रेड परसेंट डिस्कॉउंट देने का सोच रहे हैं. लेकिन आपदा में अवसर खोजने वाली देश की व्यौपारी सरकार स्कीम तैयार कर रही है कि भक्सीन का नाम ही रख दिया जाए फिरी भैक्सीन, तो फिरी भैक्सीन अगर नकद लीजिएगा तो सिंगल डोज़ औऱ पूरी तरह फिरी में चाहिए तो डबल डोज़. दूसरा डोज 2024 के आम चुनाव के बाद लगाया जाएगा.
समस्या तो औऱ बड़ी है कि नौ करोड़ बिहारियों को भैक्सीन लगाने के लिए डॉक्टर कंपाउंडर कहां हैं, तो लीजिए डॉक्टर साहब हाज़िर हैं. नीतीश राज में गली गली झोला डॉक्टर तैयार बैठे हैं कि कब वैक्सीन आए और कब इनका धंधा चमक जाए.
तो डागदर बाबू तैयार हैं सूई घोंपने के लिए, जब आपका बॉडी ठंडा हो जाए तो गरम करने की सुई, जब बॉडी गरम हो तो ब़ॉडी हमेशा के लिए ठंडी करने के लिए कौन सा सूजा घोंपना है, ये खूब जानते हैं. बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं कि कब कोरोना की भैक्सीन आए और कब ये गड़हा का पानी सीरींज में भर के दस दस रुपए में घोंप दें. उससे बढ़ कर एंटी बॉयोटिक क्या हो सकता है. ये गरीब-गुरबा सब जानता है कि मजलूमों को कोरोना नहीं कोरोना को मजलूम हो जाता है. ऐसी स्वास्थ्य व्यवस्था मोदीजी पंद्रह साल मेहनत कर तैयार किए हैं. अब एक बार फिर चुनाव के नाम पर मेला-रेला लगा हुआ है बिहार में.खाने-पीने का इंतज़ाम है. खूब लाइटिंग-झालर-रोशनी लगी है शहर भर में और लोडस्पीकर बज रहा है- जमकर रैली निकल रहा है और कोरोना...भीड़ में कोरोना..जनता के पैरों तले कुचल कुचल कर मर रहा है.
लेकिन भिपक्ष को सुझा नहीं रहा है कि बीजेपी अगर भैक्सीन लगाने का वादा कर रही हैं तो हम क्या करेंगे. विपक्ष अब भैक्सीन पर सवाल पूछे जा रहा है. अमीर-गरीब सबको भैक्सीन मिलेगा कि नहीं, ये भी उज्वला सिलेंडर तो नहीं हो जाएगा. चूल्हे का दाम सिलेंडर भरवाई में तो भसूला नहीं जाएगा. सिर्फ बिहार में ही क्यों, दूसरे राज्यों में क्यों नहीं. पैसा कौन देगा. गरीब कहां जाएगा. देश भर के लोग इतनी थाली-ताली बजाए हैं उनका क्या होगा. और अगर बीजेपी चुनाव हार गई तो बिहार को भैक्सीन मिलेगा कि नहीं. कहीं सवा लाख करोड़ की तरह भैक्सिनवा भी हवा-हवाई तो नहीं हो जाएगा.जाहिर है कि जब सरकार के खून में व्यौपार हो तो भोट के बदले भैक्सीन से कम पर तो समझौता नहीं ही करेगी. अभी पश्चिम बंगाल मं चुनाव बाकी है फिर उत्तर प्रदेश का नंबर.
लेकिन बिहारी का मतलब बुड़बक नहीं होता है मोदीजी. वरना पिछली बार ही आपके सवा लाख करोड़ के झांसे में आ गया होता. जो सरकार फिरी में मजदूरों को टरेन नहीं दी, ऊ बिहार का कितना भला करेगी, इ सब जानता है, इसीलिए कहीं सूई तो कहीं सूजा ले कर जनता बीजेपी नेताओं का कैसा स्वागत कर रही है, बताने लायक नहीं, खुदै देख लीजिए...
यही वजह है कि उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी,चुनाव प्रभारी देवेंद्र फड़नवीस, स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय, शाहनवाज, राजीव प्रताप रूढी सबै पजेटिया गए हैं. शाह साहब खुद भी कमजोरी महसूस कर रहे हैं. ऐसे में स्वयं प्रधानमंत्री मोदी को प्रचार की रणभूमि में उतर पड़े हैं. लालू का इकतीस साल का लईका इस चक्रभ्यू को कैसे तोड़ेगा, कैसे महारथियों से जूझेगा. ये देखना दिलचस्प होगा. एक तरफ अक्षोहिणी सेना और बड़े बड़े महारथी, आईटी सेल और उनके साथ विशाल मीडिया ब्रिगेड- जिनको तिल को ताड़ बनाने में महारत हासिल है. उन्होंने अभी से यादवराज और जंगल राज का प्रचार शुरू कर दिया है. फेक न्यूज़ के वीडियो वायरल किए जा रहे हैं.
सच्चाई ये है मोदीजी कि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती. बिहार की धरती से ही क्रांति का जन्म होता रहा है. अठारह सौ सत्तावन से लेकर 1977 तक सूर्यपुत्रों की ये धरती पूरे देश के परिवर्तन की जननी रही है. इन सूर्यपुत्रों को वैक्सीन के झूठे वादे फुसला नहीं सकते. इन्होंने देश ही नहीं, दुनिया भर में अपनी मेहनत से अपनी भाग्यरेखा गढ़ी है. ये भोट के लिए बोली लगाने वाली आपकी गंदी आदत से वाकिफ हैं, इसीलिए आपने पूरी क्रूरता से जब लॉकडॉउन किया था तो दो महीने तक शहरों में भूख से बिलबिलाया बिहारी मजदूर आपके गाड़ी-घोड़े-ट्रेन की परवा किए बगैर अपने घर-गांव के लिए पैदल ही निकल पड़ा था. बारह सौ किलोमीटर.भूखा प्यासा दुधमुंहे बच्चे औऱ बीवी ले कर तपती धूप से कोलतार की उबलती सड़कों पर.. आपको भी मालूम नहीं कितना घर पहुंचा, कितना मुआ गया...तब मोदीजी ने कहा था- हमारे मजदूर भाई धीरज खो बैठे..
यहां याद आती है आंखों को नम कर देने वाली एक कविता, जो अपने एक साथी पत्रकार संजय कुंदन जी ने लिखी है..उसका एक अंश आपसे साझा करना चाहता हूं..बाकी तलाश के पढिएगा ज़रूर..
जा रहे हम
जैसे आए थे वैसे ही जा रहे हम
यही दो-चार पोटलियां साथ थीं तब भी
आज भी हैं
और यह देह
लेकिन अब आत्मा पर खरोंचें कितनी बढ़ गई हैं
कौन देखता है
कोई रोकता तो रुक भी जाते
बस दिखलाता आंख में थोड़ा पानी
इतना ही कहता
- यह शहर तुम्हारा भी तो है
उन्होंने देखा भी नहीं पलटकर
जिनके घरों की दीवारें हमने चमकाईं
उन्होंने भी कुछ नहीं कहा
जिनकी चूड़ियां हमने 1300 डिग्री तापमान में
कांच पिघलाकर बनाईं
किसी ने नहीं देखा कि एक ब्रश, एक पेचकस,
एक रिंच और हथौड़े के पीछे एक हाथ भी है
जिसमें खून दौड़ता है
जिसे किसी और हाथ की ऊष्मा चाहिए
हम जा रहे हैं
हो सकता है
कुछ देर बाद
हमारे पैर लड़खड़ा जाएं
हम गिर जाएं
खून की उल्टियां करते हुए
हो सकता है हम न पहुंच पाएं
वैसे भी आज तक हम पहुंचे कहां हैं
हमें कहीं पहुंचने भी कहां दिया जाता है
हम किताबों तक पहुंचते-पहुंचते रह गए
न्याय की सीढ़ियों से पहले ही रोक दिए गए
नहीं पहुंच पाईं हमारी अर्जियां कहीं भी
हम अन्याय का घूंट पीते रह गए
जा रहे हम
यह सोचकर कि हमारा एक घर था कभी
अब वह न भी हो
तब भी उसी दिशा में जा रहे हम
कुछ तो कहीं बचा होगा उस ओर
जो अपना जैसा लगेगा.