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  • कैसे कराया गया था किसानों का हक मारने वाला कानून राज्यसभा में पास,नियमों की उड़ाई गईं धज्जियां
  • January 04, 2021
  •       संसद में कैसे कराए गए थे पास- किसानों का हक मारने वाले कानून...

     
    - अंशुमान त्रिपाठी
    सर्दी की ठिठुरती रातों में पंजाब और हरियाणा के किसान और उनका साथ देने पहुंचे दूसरे राज्यों से आए संगठन, छोटे-छोटे बच्चे, बुजुर्ग औऱ परिवार की महिलाओं के साथ दिल्ली सीमा पर अपनी जम्हूरी हक के लिए खुले आसमान के नीचे बैठे हैं... इन किसानों की ताकत से डरी हुकूमत ने इनकी अगवानी के लिए सड़कों को काट कर गहरी-गहरी खाईयां खुदवाई थी, कांटेदार बैरिकेड लगाए थे, सड़क पर कंकरीट की किलेबंदी की गई थी और ठंडे-ठंडे पानी से मोदी सरकार ने किसानों का सर्दी में स्वागत किया था. अब ये किसान बार बार पूछ रहे हैं कि मोदीजी को किसने कहा था हमारा भला करने के लिए. हमें नहीं चाहिए उनके किसान कानून.. हमें नहीं चाहिए हमारी मंडियों और खेतों पर किसी और का हक....तो यहां ये जानना बेहद ज़रूरी हो गया है कि किसानों से पूछे बगैर उनका भला करने वाला कानून देश की पार्लियामेंट में आखिर पास कैसे हो गया था...अब साफ समझ में आने लगा है कि इन्हीं कानूनों को पास कराने के लिए सरकार ने संसद के नियमों की धज्जियां उड़ाई थी. मोदी सरकार अपने ही कानून-नियमों को तोड़ कर मनमानी करने वाली सरकार है. देश के संसदीय नियमों को बलाए-ताक रख कर कानून पारित करने की हड़बड़ी की वजह अब सबको समझ में आने लगी है. तब तक कोरोना और मंदी की मार से जूझ रहे आम आदमी को कतई अंदाज़ा नहीं था कि प्रधानमंत्री किसानों का इतना भला आखिर क्यों चाहते हैं...दरसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के परम मित्र पूंजीपतियों को डाटा से ले कर आटा तक हर ज़रूरी कारोबार पर अपना कंट्रोल चाहिए. यारों की यार और दुश्मनों की दुश्मन है मोदी सरकार. जो अपने दोस्तों के लिए कुछ भी कर सकती है,..क्योंकि...मोदी है तो मुमकिन है... औऱ मोदीजी के दोस्तों से बड़ी थोड़ी है देश की संसद...  तो सरकार के इस मसौदे को लेकर किसानों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए थे लेकिन 3 नॉट 3 बीजेपी सांसदों के दम पर लोकसभा में किसान संबंधी तीनों विधेयक बेखटके पास हो गए... वहीं, 20 सितंबर को राज्यसभा में इन किसान विरोधी दो कानून पास कराने के लिए रूल 37 को तोड़ा गया. ये नियम कहता है कि सदन की कार्यवाही की समय सीमा बदलाव सबकी सहमति से यानि सेंस ऑफ द हॉउस से ही किया जा सकता है. तब अपोज़ीशन की बारह पार्टियों ने कहा कि ये मुद्दा बेहद नाज़ुक है और ज़ल्दबाज़ी ठीक नहीं है.  वक्त ना बढ़ा कर अगले कार्यदिवस पर भी इस विषय पर बातचीत होना चाहिए. लेकिन मोदी सरकार के दोस्तों को देरी मंजूर ना थी. शायद सरकार को भी लगा कि कोरोना और मंदी की मार से अधमरे किसान काले कानूनों का क्या खाक विरोध करेंगे. नीतीश कुमार के दरबारी रहे और सत्ता की पक्षकारिता कर उपसभापति बने ठाकुर हरिवंश नारायण सिंह को ज़मीर बेचने का पुराना तज़ुर्बा रहा है. वो समझ गए कि उन्हें दोबारा चुने जाने की कीमत अदा करने के लिए किसानों के घरों का चूल्हा बुझाने की साज़िश में शामिल होना पड़ेगा. इसके बाद तो बीच बाज़ार संसदीय प्रक्रिया बेआबरू होती रही.... और राज्यसभा के रूल 252- सब क्लॉज- 4 का भी खुले आम उल्लंघन किया गया. इस नियम के मुताबिक किसी भी प्रस्ताव या विधेयक पर विभाजन यानि डिवीज़न की मांग की जाती है तो उसे सभापति को मानना पड़ता है. हरिवंशजी ने विपक्ष के विरोध के बावजूद सदन की कार्यवाही का वक्त बढ़ा दिया और रिसॉल्यूशन पढ़े जाने लगे. सीपीएम सांसद के के रागेश ने किसान बिल को सेलेक्ट कमेटी में भेजने का रिसॉल्यूशन दिया था. जब इसे पढ़ा गया तो रागेश ने डिवीज़न की मांग की. रागेश के मुताबिक उपसभापति हरिवंशजी ने अनसुना कर दिया. डीएमके के तिरुचि शिवा का भी यही आरोप है कि हम लोग डिवीज़न डिवीज़न चिल्लाते रहे लेकिन डिप्टी स्पीकर ने हमें देखा तक नहीं. बाद में हरिवंशजी ने सफाई दी कि सदस्यों ने अपनी सीट से डिवीज़न की मांग नहीं की थी. औऱ इस तरह वोटिंग कराए बगैर ध्वनि मत यानि वॉइस वोट से किसान विरोधी कानून पास करा लिए गए.... बाद में इंडिय़न एक्सप्रेस ने राज्यसभा टीवी की फुटेज के आधार पर  खुलासा किया कि उपसभापति का दावा गलत था. डिवीज़न की मांग करने वाले सांसद अपनी सीट पर ही थे...उनके मुताबिक वीडियो में तिरुचि शिवा अपनी सीट से हाथ उठाकर मत विभाजन की मांग करते हुए दिखाई पड रहे हैं. वहीं टीएमसी के डेरेक ओ’ब्रायन ने रूल बुक उपसभापति को दिखा रहे हैं और कह रहे हैं कि आप रूल्स को वॉयोलेट कर रहे हैं...इस पर भड़क गई सरकार और उसकी स्वामिभक्त मीडिया. दोनों ने उल्टे उन्हीं पर रूलबुक फाड़ने और माइक तोड़ने का आरोप लगाया. डेरेक के मुताबिक ये आरोप सरासर गलत हैं. वीडियो में तिरुचि शिवा भी विरोध करते नज़र आ रहे हैं. वो एक बार फिर डिवीजन की मांग करते हैं, जो साफ सुनाई दे रहा है...वहीं रागेश गैलरी में सीट नंबर 92 से दिखाई दे रहे हैं. उनका कहना है कि उनके माइक को भी म्यूट कर दिया गया था, जबकि वो भी डिवीजन की मांग कर रहे थे. तब हरिवंश अपना झूठ पकड़े जाने पर विवेकाधिकार का हवाला दे कर बच निकलते हैं....उसके बाद तो सीनाज़ोर सरकार के राष्ट्रवादी मंत्री विपक्ष को नैतिकता सिखाने में जुट गए. ज़रा रविशंकर प्रसाद की भाषा तो देखिए....संसदीय नियमों को ताक पर रख कर कानून पास कराने के इस तरीके का विरोध करने पर कांग्रेस,टीएमसी, आम आदमी पार्टी और सीपीएम समेत 8 सांसदों को सदन से सस्पेंड कर दिया गया. हालांकि एनडीए के घटकों में से सिर्फ वाइएसआर कांग्रेस ही बिल के पक्ष में थी. बाकी सब विरोध में थे. एनडीए के सहयोगी दल शिरोमणि अकाली दल,बीजू जनता दल,तेलंगाना राष्ट्र समिति बिल को सेलेक्ट कमेटी भेजने की मांग कर रहे थे.... हैरानी इस बात की है कि सस्पेंडेड सांसदों पर संसदीय आचरण के विरुद्ध कार्य करने का आरोप लगाया गया. जबकि संसदीय प्रक्रिया के उल्लंघन को संसदीय आचार के खिलाफ नहीं माना गया. यानि जो किसानों के हक में बोले वो गलत और जो पार्लियामेंट के रूल के खिलाफ जा कर काले कानून का समर्थन करे वो सही....खैर कुछ भी हो डिप्टी स्पीकर हरिवंश किसानों का हक छीनने की इस साज़िश के लिए नैतिक रूप से दागदार रहेंगे. और संसदीय इतिहास उन्हें शायद ही भूल पाएगा...दो दिन बाद तीसरा बिल एसेंशियल कमोडिटी एक्ट 2020 यानि जमाखोरी पर रोक हटाने वाला कानून भी पास हो गया... और इस तरह से मोदीजी के दोस्तों के लिए खेतों तक पहुंचने का रास्ता साफ हो गया. एपीएमसी मंडियां और आढ़तियों से निवाला छीन किसानों को बड़े कॉर्पोरेट यानि बड़े मगरमच्छों का निवाला बनाने की तैयारी पूरी हो गई. अब सरकार एमएसपी की जिम्मा उठाने को तैयार नहीं है. पैसे वाले बड़े कारोबारियों को पैर जमाने के लिए मंडी टैक्स से भी छूट. उनके लिए जमाखोरी रोकने वाला कानून भी हटा लिया गया. ऊपर से मोदीजी कह रहे हैं कि वो किसानों का भला चाहते हैं... अगर संसदीय प्रक्रिया की बात की जाए तो इंडियन एक्स्प्रेस से बातचीत में लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचार्य ने कहा है कि यदि मौखिक रूप से कोई सांसद मांग करता है तो इसकी स्वीकार करना पड़ता है, वरना कानून को पारित नहीं माना जा सकता. उनके मुताबिक संविधान के अनुच्छेद 100 से ये प्रक्रिया निकली है.... वहीं विपक्ष का एक औऱ आरोप है कि कोई भी सदस्य बिल को सेलेक्ट कमेटी को भेजने का प्रस्ताव रख सकता है. लेकिन बिल को कमेटी में भेजने के  प्रस्ताव पर वोटिंग ही नहीं कराई गई....विपक्ष भी अपनी बात पर अड़ा रहा. संविधान के अनुच्छेद 90 के तहत उपसभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया. कांग्रेस के मुताबिक 100 से ज्यादा सांसदों ने अविश्वास प्रस्ताव पर दस्तखत किए... लेकिन राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू ने तकनीकी आधार पर अविश्वास प्रस्ताव को खारिज कर दिया... तब सस्पेंडेड सांसदों ने निलंबन के खिलाफ संसद परिसर में गांधी प्रतिमा के पास धरना दे दिया.... लेकिन संसदीय़ लोकतंत्र का पाखंड यहीं नहीं, रुका... और आगे तक चला. उपसभापति सुबह सुबह चाय के थर्मस और मोदीजी की तरह कैमरा टीमें ले कर पहुंच गए, प्रदर्शनकारी सांसदों को जलील करने... उसके बाद तो स्वामीभक्त मीडिया विपक्ष पर हमलावर हो गया...लेकिन विपक्ष ने राष्ट्रपति को पत्र लिख और मुलाकात कर उपसभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव खारिज किए जाने औऱ 8 सांसदों के निलंबन का मुद्दा उठाया. लेकिन हुआ कुछ नहीं....औऱ इस तरह सरकार ने लोक-लाज की परवा नहीं की..और संसदीय लोकतंत्र की लाज लुटती रही... शायद देश की आम आवाम को अब तक पता ही नहीं चला कि किसान की ज़मीन, उसकी मेहनत और मेहनताने पर डाके का षड़यंत्र देश की संसद में बैठ कर रचा गया. और किसान के हक के लिए लड़ने वालों को देशद्रोही, आतंकवादी, कांग्रेसी और खालिस्तानी वगैरह कहा जा रहा है. दरसल अब मोदी इज़ इंडिया, इंडिया इज़ मोदी हो चुका है. माना जा रहा है कि देश का संविधान-न्याय व्यवस्था-मीडिया-समाज सब बदल चुका है. एक देश-एक विधान, एक पार्टी-एक पंथप्रधान के जरिए देश हिंदू राष्ट्र हो चुका है... 
     
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