अधिनायकवाद की नींव पर नए संसद भवन का शिलान्यास, नियम-कानून रख ताक पर 20 हज़ार करोड़ का खर्च
अंशुमान त्रिपाठी
जिस सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत बन रहे नए संसद भवन का प्रधानमंत्री मोदी शिलान्यास कर रहे हैं. उसकी नींव में ही नियम-कानूनों की बलि चढ़ा दी गई है.
सवाल ये भी है कि महामारी और महामंदी के इस दौर में निर्माणाधीन सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर 20 हज़ार करोड़ रुपए का खर्च क्यों किया जा रहा है.
एक तरफ लाखों की तादाद में किसान अपने बच्चे औऱ परिवार के साथ अपनी ज़मीन, अपनी मेहनत और मेहनताने पर डाका डालने की साज़िश के खिलाफ दिसंबर की ठंड में खुले आसमान के नीचे पिछले चौदह दिन से बैठे हैं दिल्ली के बॉर्डर पर और दिल्ली दरबार कभी बनारस में लाइट एंड साउंड देख रहा है तो कभी आगरा मेट्रो का उद्घाटन कर रहा है....और अब...अब वो अपनी पसंद के लोकतंत्र के लिए अपनी पसंद के संसद भवन का शिलान्यास कर रहा है....जैसा कि नज़र आ रहा है.. लेकिन सवाल उठ रहे हैं कि क्या पेंटागन की भोंडी नकल पर बन रहा है त्रिकोणाकार नया संसद भवन, जिसका प्रधानमंत्री कर रहे हैं शिलान्यास, क्यों बदला जा रहा है 2000 करोड़ के इस सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट से राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट तक का पूरा नक्शा, पूछा जा रहा है कि क्या हिटलर के वक्त जर्मनी के थर्ड राइख की तरह तो नहीं बन जाएगी रायसीना हिल्स ? .. कहीं गेस्टॉपो हेडक्वार्टर जैसा अहसास तो नहीं कराएंगी सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट की इमारतें... क्योंकि खबरों के मुताबिक सड़क से एकदम सटे होंगे मंत्रालयों के बहुमंजिला भवन जो अंदर ही अंदर जुड़े होंगे. अब इन इमारतों के बाहर हरियाली नहीं, अंदर हरियाली होगी. ऊंचे इतने होंगे कि परिंदा भी पर ना मार सके, आम आदमी को अब इंडिया गेट पर मस्ती औऱ मटरगश्ती करने की इज़ाजत नहीं होगी क्योंकि उच्च सुरक्षा श्रेणी में रखा जाएगा देश का ये राष्ट्रीय प्रांगण. जी हां इसे राष्ट्रीय प्रांगण कहा जाता है. तो सौ एकड़ का ये इलाका अब नेशनल स्पेस नहीं होगा, ये होगा वीवीआईपी ज़ोन. राष्ट्रपति भवन से ले कर इंडिया गेट तक के इस अति सुरक्षित इलाके में अब आम आदमी ज़रूरी परमीशन के बगैर घुस नहीं सकेगा. यहां फैमिली पिकनिक मनाना तो दूर की बात होगी.इस इलाके से आप हमेशा की तरह अपनी गाड़ी से सैर करते हुए निकल भी नहीं पाएंगे. ना तो किसी निर्भया के लिए इंडिया गेट पर मोमबत्ती जलाने के लिए जुट सकेंगे, ना ही दूरदराज से आए देशवासी राजपथ पर चाव से ले पाएंगे अपनी सेल्फियां...क्योंकि अब इस पर सरकार और नौकरशाह का गढ़ तैयार होगा- ऐसा दुर्ग सा होगा, जिस पर होगा हर पल कड़ा पहरा... अब तो सरकार की हसरतें औऱ करवटें ले रही हैं, लिहाज़ा 2.9 किलोमीटर के इस राष्ट्रीय प्रांगण को यमुना किनारे 6 किलोमीटर तक यानि नव भारत उद्यान तक बढ़ाने की योजना है. वहां मोदीजी इंडिया गेट से तीन गुना बड़ा स्मारक बनवाना चाहते हैं, सरकार आर्कीटेक्ट्स, टॉउन प्लानर्स और डिजायनर्स का एक कॉपंटीशन करवा रही है. उसका कहना है कि हर डिज़ायन में नया इंडिया झलकना चाहिए
दरसल आप सवाल पूछेंगे कि आखिर प्रॉब्लम क्या है. हर देश की राजधानी में ये एक खास इलाका होता है, जिसकी बनावट देख कर आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि ये लोकतांत्रिक देश है या अधिनायकवादी. इसे नेशनल स्पेस कहा जाता है यानि राष्ट्रीय प्रांगण. लोकतांत्रिक देश में ये नेशनल स्पेस आम आदमी के लिए होता है और अधिनायकवादी देश में इस स्पेस पर सेना, सरकार और नौकरशाहों का. यानि नकल से लेकर सोच तक, सब पर नाजी जैसी विचारधारा का असर. जबकि उदार हो कर सोचा जाए तो अंग्रेजों को भी भारतीय संस्कृति को लेकर मौजूद सरकार से ज्यादह तमीज़ थी. संसद भवन का डिजायन मुरैना के चौसठ योगिनी मंदिर की तर्ज पर तैयार कराया गया था, जो भारतीय शिल्प कला का अद्भुत नमूना माना जाता है, इसे इकंतरो महादेव मंदिर भी कहा जाता है. इसकी चक्राकार दीवालें और बीचे में खुला हुआ मंडप. जबकि नई त्रिकोणाकार डिजायन की प्रेरणा अगर पेंटागन से नहीं ली गई है तो ये ज़रूर ब्रिटिश वास्तुकार हर्बर्ट बेकर की तीन खंडों वाली डिजायन की नकल है, जिसका लुटियंस ने विरोध किया था और बेकर को अपना डिज़ायन बदलना पड़ा. पुरानी लुटियंस की डिज़ायन देखें तो राष्ट्रपति भवन के निर्माण में सांची के स्तूप की झलक, नॉर्थ औऱ सॉउथ ब्लॉक में राजपूत और मुगल आर्किटेक्चर की पहचान हाथी औऱ छतरियां
आखिर जो इमारते हमारी आज़ादी की लड़ाई और जम्हूरियत की बुनियाद पर बनी हैं, उन्हें सिर्फ फिरंगी पहचान मान कर तोड़ देना कहां तक जायज़ है. जब हम कमला हैरिस और तुलसी गाबार्ड के अमेरिकी राजनीति में जगह पर गर्व से भर जाते हैं. जब प्रधानमंत्री पाकिस्तान सिर्फ बिरयानी खाने जहाज मुड़वा देते हैं. दुनिया एक दूसरे से गुंथ चुकी है. बात सिर्फ इतनी सी नहीं है. दरसल आजादी की लड़ाई के वक्त अंग्रेजों के साथ खड़े रहने वाली विचारधारा की पार्टी स्वतंत्रता और लोकतंत्र के प्रतीकों को गिरा कर आवाम के दिमाग में हिंदू, हिंदी, हिंदुस्थान की सोच भर देना चाहती है. औऱ ये निर्माण एक पंथनिरपेक्ष लोकतंत्र पर इश विचारधारा की विजय के प्रतीक हैं. वजह यही है कि अर्थ व्यवस्था में माइनस चौबीस फीसदी गिरावट, कोरोना, मंदी जैसे बड़े संकटों से जूझ रहे देश का जननायक सिर्फ अपनी सनक के लिए 20 हज़ार करोड़ खर्च नहीं कर रहा है..क्योंकि अपनी याद से जुड़ी इमारतें, मीनारें, अजायबघर तैयार कराना किसी भी तानाशाह का सपना होता है. और आगे आने वाले वक्त में जब विदेशी सैलानी आएंगे तो भारत से उनका मतलब मोदी से होगा, क्योंकि मोदी मतलब भारत और भारत मतलब अघोषित हिंदू राष्ट्र
लेकिन जब केंद्र सरकार पर अंग्रेजों के पिठ्ठू रहे संगठन की पार्टी काबिज़ हो तो आफ उनसे हिंदू धर्म, कला, शिल्प, स्थापत्य और संस्कृति की समझ की उम्मीद नहीं कर सकते. आज़ादी की लड़ाई का विरोध करने वाली इस कौम के दिमाग में सदियों से गुलामी रच बस गई है. ब्रिटिश एंपायर की सेना में भर्ती के लिए हरकारा लगाने वाले अब हिटलराना सोच के सपने ज़मीन पर उतार रहे हैं. और तरीके भी वही है.... मसलन, अहमदाबाद का रिवरफ्रंट बनाने वाली कंपनी एचसीपी को दिया गया है सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट की कंसल्टेंसी. आरोप लग रहा है कि ज्यादा काबिल कंपनियों को दर किनार कर हिटलराना अंदाज़ में अपने पसंदीदा कंपनी को काम देने के लिए कई नियम कानून को रख दिया गया ताक पर. औऱ इसी तरह से राष्ट्रीय धरोहर संरक्षण कानूनों की भी बड़ी तरकीब से उड़ाई गई धज्जियां, ए-वन केटेगरी की ज़मीन पर गिरा कर इमारतें, बनाए जा रहे हैं बहुमंजिला भवन, जिनकी इज़ाजत कानून नहीं देता. 200 करोड़ में बना ग्रीन भवन भी गिराया जाएगा, जो आठ साल का भी नहीं हुआ. कट जाएंगे हज़ारों पेड़, उजाड़ दी जाएगी जम्हूरियत और खुलेपन का अहसास दिलाने वाली हरियाली. पर्यावरण संरक्षण कानून का भी उड़ाया जा रहा है बुरी तरह मखौल. अपने ही देश के नियम,कानून और संवैधानिक संस्थाओं का मखौल उड़ाने वाली पहली सरकार है मोदी सरकार. आपके एकदम सामने है इसकी मिसाल, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि जब इस मामले की सुनवाई अदालत में जारी है तो आप किसी तरह की तोड़फोड़ या निर्माण कार्य नहीं कर सकते, लेकिन ये वीडियो देखिए जो 4 नवंबर को आजतक के पत्रकार शम्स ताहिर खान ने ट्विटर पर शेयर किया है. ये देखिए रात के अंधेरे में किस तरह चोरी-छुपे सुप्रीम कोर्ट की नाक के ठीक नीचे रायसीना हिल्स पर खुदाई का काम चल रहा है.. इसके अगले दिन सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रोजेक्ट के निर्माण के लिए कानूनों के उलंघन को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई पूरी कर ली थी और फैसला रिज़र्व कर लिया था. ज़ाहिर है कि देश की सबसे बड़ी अदालत को अंधेरे में रख कर मनमौजी सरकार अपनी हरकत से बाज नही आ रही है. औऱ ये सोच सेंट्रल विस्टा की डिज़ायन से लेकर उसके अमल में भी साफ नज़र आ रहा है. मोदी सरकार नए संसद भवन को 2022 तक पूरा करवा कर दिखाना चाहती है कि सरकार श्रम, अनुशासन और सख्त प्रशासन में य़कीन करती है. और 20 हज़ार करोड़ के इस प्रोजेक्ट में प्रधानमंत्री और उपराष्ट्रपति का नया आलीशान निवास भी बनवाया जाएगा. कहीं हमारे इंटरनेशनल फकीर 2024 में भी इस पर्णकुटी में रहने का मन तो नहीं बना चुके हैं. अगर ऐसा है तो हमारे अमित शाह का क्या होगा, जो अभी से खुद को हाफ प्राइम मिनिस्टर मान बैठे हैं. खैर सरकार को इस बात से कोई मतलब नहीं कि कोरोना, मंदी, नोटबंदी और जीएसटी की मार झेल रही देश की जनता एक-एक पैसे के लिए तबाह है और केंद्र सरकार से राहत को मुंह जोह रही है. केंद्र गरीबों की मुठ्ठी में चंद सिक्के अगर रख दे तो मौत की तरह सर्द इस माली मौसम में माहौल में कुछ गर्मी पैदा हो. लेकिन व्यौपारी सरकार एक टका भी किसी को देने को तैयार नहीं है. लेकिन अधिनायक की अमर होने की आकांक्षा की वजह से ईंट-गारा-पत्थर जोड़ कर ऊंची से ऊंची इमारत खड़ा करता है और सत्ता के खुफिया गलियारे बनवाता है. जहां उसकी गतिविधियों को फौलादी पर्दे से ढ़का जा सके. बहरहाल सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने कहा है कि मंत्रालयों की इमारत का किराया बचाने के लिए नई इमारतें खड़ी करना ज़रूरी है. अधिनायकवादी हमेशा नागरिकों के कर्तव्य, सैन्य अनुशासन, देशप्रेम, संस्कृति, परंपरा, धर्म और नस्ल आधारित राष्ट्रवाद पर ज़ोर देते हैं. ऐसे में सरकार के किसी भी फिजूलखर्ची या जनविरोधी गतिविधि पर सवाल उठाना राष्ट्र निर्माण में बाधा उत्पन्न करना, देशद्रोही, अरबन नक्सल, आतंकवादी, टुकड़े-टुकड़े गैंग का मेंबर होने के बराबर समझा जाता है. ऐसे में देश की पहचान बदलने की इस कोशिश पर रोक के लिए सिर्फ न्याय पालिका से उम्मीद रखी जा रही है.