search
  • कोरोना के नाम पर उगाही के तरीकों पर उठते सवाल..
  • April 13, 2020
  •  कोरोना के नाम पर उगाही के तरीकों पर उठते सवाल....-अंशुमान त्रिपाठी

     

     

    जवाब देना तो दूर सरकार को सवाल उठाना भी पसंद नहीं...

    क्या गहना-दान की अपील के पीछे है कोरोना के पीछे आ रही मंदी की सुनामी

    क्या खुद बीजेपी के सांसद नहीं भरोसा कर पा रहे पीएम केयर फंड पर

    क्या कोरोना संक्रमण से भी बढ़ कर है देश की माली हालात का मंजर

    क्या कोरोना के पीछे आ रही मंदी की सुनामी से डरी सरकार

    लाखों-करोड़ के कर्जे माफ करने वाली सरकार को आज गरीबों के गहने गिरवी रखवाने की जरूरत क्यों...

      जनता के नुकसान में भी  फायदे तलाशती सरकार....

    यही वजह है कि कोरोना के वक्त भूख, बेहाली औऱ बेगारी झेल रहे गरीब,मजदूर तबके की जिम्मेदारी आम नागिरकों और राज्य सरकारों की बताई जा रही है. देश के नाम संदेश के जरिए प्नधानमंत्री ने अपनी ज़िम्मेदारी देश के नागरिकों औऱ राज्य सरकारों पर मढ़ दी है. पिछले छह बरसों से सत्तर सालों को कोसने का काम लगातार जारी है. उन्होनें बार बार कहा कि हम 21 साल पीछे चले जाएंगे. कोरोना को 6 सालों में हुई देश की आर्थिक बरबादी के लिए ज़िम्मेदार मान लिया गया है. सरकार की फिज़ूलखर्ची ज़िम्मेदार नहीं. लेकिन  प्नधानमंत्री के ऐलान ने फिक्र बढ़ा दी है. क्या देश की माली हालत का मंजर कोरोना से भी बढ़ कर है प्रधानमंत्रीजी.

    क्या कोरोना के पीछे आ रही माली सुनामी पर आपकी नज़र पड़ गई है. 

     प्रधानमंत्रीजी, इन दिनों आपको कोसना उचित नहीं, लेकिन आप अपने फायदे के लिए सिर्फ गलतियां नहीं करते बल्कि दूसरों के नुकसान से भी बाज़ नहीं आते. आपने देश की भावुक जनता से गहने-जेवर दान करने या गिरवी रख कर देश के नाम देने का अतिभावुक संदेश दिया है. आपने ये भावुकता तब क्यों नहीं दिखाई जब आपकी सरकार अरबपतियों को लाखों-करोड़ रुपए के कर्ज माफ कर रही थी. तब भी तो आपने इसी भोली जनता के पैसे बैंकों में डाल कर  एनपीए से बचाया.

    जो पहले से ही दो जून की रोटी को तरस रहे हैं या फिर मध्यम वर्ग जो किसी तरह उस वर्ग में शामिल होने से बच रहे हैं, उन्हीं के पैसे पर आपकी नज़र है.

    क्योंकि बड़े-बड़े औद्योगिक औऱ व्यापारिक घरानों के लिए तो आपने कॉर्पोरेट टैक्स में छूट दे रखी है.

    यही नहीं, मोदीजी, आपने तो अरबपतियों के लिए वो किया है जो सत्तर साल में पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने किया होगा. आपने रिज़र्व बैंक के रिज़र्व कैपिटल रैश्यो को घटा कर वहां से एक लाख छियत्तर हज़ार करोड़ रुपए निकाल लिए और इन्हें एक लाख पैंचालीस हज़ार करोड़ की राहत दे दी.

    अपने नफे के लिए दूसरों के नुकसान से भी बाज़ नहीं आते सरकार. आप दोहरी चाल चलना जानते हैं, यानि सिर्फ अपना मुनाफा ही ना हो बल्कि शत्रुओं को नुकसान भी हो. नोटबंदी आपने जनता के कालेधन के लिए कतई नहीं की थी. ये आप जानते थे. और काला धन निकला भी नहीं. बल्कि ज्यादा ही पैसा निकल आया. नोटबंदी विपक्ष के लिए की गई थी, ताकि अगले दस-पंद्रह बरस तक वो चुनाव जीतने के लिए काला पैसा खर्च ना कर सके. वहीं सत्तारूढ़ दल को अपने प्रचार-प्रसार और नेता-विधायक-सांसदों की खरीदफरोख्त का खर्च उठाने के लिए इलेक्टोरल बांड से लेकर बहुत से जरिए तैयार कर लिए. सभी को मालूम है कि नोटबंदी के दौरान ही देश भर के हर जिले में बीजेपी कार्यालय के नाम पर ज़मीन खरीदने औऱ भवन निर्माण का काम किया गया था.

     दर्दनाक बात ये है कि आज भी कोरोना पीड़ितों के इलाज़ से ज्यादा उसके नाम पर इकट्ठी की जाने वाली रोकड़े को मनमाने तरीके से रखने के तरीकों पर काम किया जा रहा है. पीएम केयर्स फंड इसकी एक मिसाल भर है, अब तो ये साबित भी हो गया कि इसका ऑडिट सीएजी के बजाय स्वतंत्र ऑडिटरों से कराया जाएगा ,जिनकी नियुक्ति इसके ट्र्स्टी करेंगे. इसके ट्रस्टियों में नेता विपक्ष को शामिल नहीं किया गया है. जब प्रधानमंत्री राहत कोष में 3800 करोड़ रुपए पहले से ही जमा है तो भी पीएम केयर्स फंड बनाने की ज़रूरत समझी जा सकती है. यही नहीं, जब केरल में आपदा आई थी तो केंद्र सरकार ने विदेश सहायता लेने से इंकार कर दिया था. लेकिन पीएम केयर्स फंड में विदेशी सहायता के लिए आयकर और सीएसआर छूट उपलब्ध कराई गई है.

     सच्चाई तो ये है कि प्रधानमंत्रीजी के इस केयरफंड पर बीजेपी और सहयोगी दलों के ही आधे से ज्यादा सांसद भरोसा नहीं कर पा रहे थे. सूत्रों के मुताबिक अपने सांसदों को एक-एक करोड़ रुपए जमा करने के लिए कहा गया था. लेकिन बहुत से सांसदों ने दिलचस्पी नहीं दिखाई. ऐसे में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का सवाल उठाना मौजूं हो जाता है.

    शायद ये एक बड़ी वजह है कि सरकार ने आननफानन सांसदों के वेतन-भत्तों में कटौती का फैसला ले लिया और अगले दो साल तक सांसद निधि के प्रयोग का अधिकार अपने हाथ में ले लिया. प्रत्येक सांसद को हर साल पांच करोड़ रुपए मुहय्या कराए जाते हैं. ऐसे में 543 लोकसभा सदस्य और 245 राज्यसभा सांसद यानि कुल 788 सांसदों की अगले दो साल तक की सांसद निधि 7800 करोड़ ले ली जाएगी. इसके साथ ही सांसद निधि में जमा पांच हज़ार करोड़ रुपए की राशि के खर्च का अधिकार भी सांसदों के हाथ में नहीं रहेगा. यहां सवाल ये है कि जब सांसद जनप्रतिनिधि है तो वो अपने संसदीय क्षेत्र में कोरोना संक्रमण की रोकथाम में इस पूंजी का इस्तेमाल क्यों नहीं कर सकता. बीजेपी सांसद के लिए भी अपने क्षेत्र की तात्कालिक समस्याओं के निदान के लिए अब कोई जरिया नहीं बचा. आपकी रणनीति का मकसद विपक्ष को निहत्था करना है. फिर सांसदों की उपयोगिता क्या है. उसे आपने क्षेत्र में जा कर काम करने के लायक भी नहीं छोड़ा. 

    सांसद निधि का हमेशा से प्राकृतिक आपदा में इस्तेमाल होता रहा है. 1999 में ओडिशा में तूफान पीडितों की मदद, 2001 में गुजरात के भूकंप पीड़ित,2004 में सुनामी, 2008 में कोसी की बाढ़, 2009 में प.बंगाल में आलिया तूफान औऱ 2010 में लेह में बादल फटने से बरबादी में निधि का इस्तेमाल, 2011 में सिक्कम औऱ दार्जलिंग में भूकंप, 2013 में उत्तराखंड में बादल फटने की घटना,2014 में जम्मू-कश्मीर में बाढ़, औऱ आध्रे प्रदेश में हुदहुद तूफान के दौरान सांसद निधि मदद का एक बड़ा जरिया था.

     कोई ये कैसे विश्वास करे कि केंद्र सरकार हर जरूरतमंद को पूरी ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ संसाधनों का आवंटन करेगी. सरकार के कदमों के प्रति राज्यों में विश्वास की कमी की वजह भी है. हाल ही में केंद्र ने केरल को 314 संक्रमण माले सामने आने पर 157 करोड़ की राशि दी थी. जबकि गुजरात में केवल 122 मामलों के लिए 662 करोड़ रुपए आवंटित किए थे.

     सांसद निधि के केंद्रीय समेकित निधि में जमा होना मतलब खजाने में वापस हो जाना है. सवाल ये उठ रहा है कि इस रासि को सीधे कोरोना संक्रमण से रोकने के लिए आवंटित क्यों नहीं किया जा रहा है. खजाने में सीधे जमा होने के मायने क्या हैं, पीएम केयर फंड में क्यों नहीं डाला जा रहा है. ताकि पीएम केयर्स फंड में जमा राशि किसी भी विवाद के दायरे में ना आ सके.

    यहां सवाल सिर्फ कोरोना के नाम पर पैसा जुटाने भर का नहीं है. अगर पीएम केयर्स फंड में सीएसआर के इस्तेमाल की अनुमति है तो मुख्यमंत्री राहत कोष में सीएसआर के प्रयोग पर लगी रोक को खत्म किया जाना चाहिए. राज्य सरकारों को भी अपने लिए फंड जुटाने का अधिकार होना चाहिए. 

     अपने राजनीतिक विरोधियों को खत्म करने के लिए 2014 में सरकार बनते ही स्वयंसेवी संगठनों को योजनाबद्ध तरीके से खत्म किया गया. ताकि वो सरकार के जनविरोधी तौर तरीकों पर सवाल ना उठा सके. उनके एफसीआरए लाइसेंस निरस्त कर दिए गए. देश के सार्वजनिक उपक्रमों के सीएसआर पर केंद्र सरकार ने पूरी तरह नियंत्रण कर लिया. ये बात समझ से परे है कि इसके बावजूद आज आम आदमी के गहने बिकवाने के उपदेश देने की नौबत क्यों आन पड़ी.

    और अगर केंद्र सरकार इतने भयावह वित्तीय संकट से गुजर रही है तो 20 हज़ार करोड़ रुपए के सेंट्रल विस्टा रिडेवलपमेंट को क्यों स्थगित नहीं किया जा रहा है. खासकर जब पूरा विपक्ष इस भयावह संकट के दौर में इस योजना को स्थगित करने की मांग कर रहा है. लेकिन सरकार को फिज़ूलखर्ची पर सवाल पसंद नहीं. उसे रूस को एक बिलियन डॉलर की मदद पर भी सवाल पसंद नहीं.

    दरसल सरकार को जवाब देना तो दूर, सवाल सुनना भी पसंद नहीं......

     

    अंशुमान त्रिपाठी

     
  • Post a comment
  •       
Copyright © 2014 News Portal . All rights reserved
Designed & Hosted by: no amg Chaupal India
Sign Up For Our Newsletter
NEWS & SPECIAL INSIDE!
ads