एक अध्ययन के मुताबिक इलाज के बेहतर साधन से टीबी से लड़ने की क्षमता बढ़ी है, लेकिन वर्तमान तरीके दवा प्रतिरोधी टीबी की भयावह स्थिति को टालने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। इस संबंध में और अधिक शोध की जरूरत है। समय से टीबी का पता चलना और इलाज बीच में छोड़ देने वाले मरीजों की संख्या कम करना बेहद जरूरी कदम हैं। दवा प्रतिरोधी टीबी वह होती है, जिस पर उपलब्ध दवाओं का प्रभाव नहीं पड़ता। ऐसे मरीजों का इलाज ज्यादा मुश्किल होता है। एंटीबायोटिक दवाओं के गलत इस्तेमाल और टीबी का इलाज बीच में छोड़ने के कारण यह स्थिति पैदा होती है।
दवा प्रतिरोधी टीबी को लेकर कराए गए एक अध्ययन के मुताबिक, 2040 तक रूस में टीबी के एक तिहाई मामले दवा प्रतिरोधी होंगे। इसकी तुलना में भारत और फिलीपींस में हर 10 में एक और दक्षिण अफ्रीका में हर 20 में एक टीबी का मरीज दवा प्रतिरोधी टीबी से पीड़ित होगा। सन् 2000 में रूस में 24.8 फीसद, भारत में 7.9 फीसद, फिलीपींस में 6 फीसद और दक्षिण अफ्रीका में 2.5 फीसद मामले दवा प्रतिरोधी टीबी से जुड़े थे।विशेषज्ञों का कहना कै कि इसके लिये किसी एक दिशा में प्रयास पर्याप्त नहीं होंगे। इस चुनौती से निपटने के लिए समग्र प्रयास की आवश्यकता होगी।