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परिवार या परिचितों में किसी एक को हेपेटाइटिस बी या सी निकलता है तो पैर के नीचे से जमीन खिसक जाती है। वजह, दोनों बीमारियां जानलेवा हैं। इनका इलाज भी है, लेकिन इतना महंगा होने के चलते गरीब मरीज इलाज नहीं करा पाते। मध्य प्रदेश कीा राजधानी और उसके आसपास के जिलों में ऐसे कई परिवार हैं, जिसमें आधे या उससे ज्यादा लोग इस बीमारी की चपेट में है। इनमें 25 लोगों का एक ऐसा परिवार भी जिसमें 15 हेपेटाइटिस बी से संक्रमित है। प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में पिछले साल हुए करीब 4 लाख यूनिट रक्तदान में .9 फीसदी लोग हेपेटाइटिस बी की चपेट में पाए गए हैं। यह बड़ा आंकड़ा है। इसके बाद भी प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में हेपेटाइटिस बी व सी के इलाज की दवाएं उपलब्ध नहीं हैं। सरकारी अस्पतालों में इन पीडितों के इलाज के लिये उचित इंतजान नहीं है। हेपेटाइटिस बी का वायरस काफी संक्रामक होता है। हेपेटाइटिस्ट के इलाज में तकरीबन 25 हजार रुपए खर्च है, जबकि तीन-चार साल पहले तक लाखों रुपए खर्च लगता था। यहां तक की गरीबी रेखा के नीचे के मरीजों के लिए राज्य बीमारी सहायता निधि के तहत चिन्हित 21 बीमारियों में स्वाइन फ्लू शामिल नहीं है।

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