मध्य प्रदेश में श्योपुर जिले में बारिश न होने से पानी का संकट बढ़ गया है। विजयपुर और कराहल ब्लॉक के की ग्राम पंचायतें पेयजल सुविधा करने मेंपूरी तरह फेल हो चुकी हैं। कराहल ब्लॉक के भीमलत गांव के परिवारों को एक पॉव केरोसिन देने के बाद पांच बर्तन पानी मिल रहा है, जिसके पास केरोसिन नहीं उसे पीने का पानी बोर से नहीं मिलता। 76 परिवारों की आबादी वाले भीमतल गांव के सारे हैंडपंप खराब पड़े हैं। कुएं व अन्य जल स्त्रोत सूख चुके हैं। पानी के लिए एकमात्र ग्राम पंचायत का एक बोर है, लेकिन उसके लिए बिजली का कनेक्शन नहीं। पंचायत ने बोर चलाने के लिए जनरेटर खरीदकर रख दिया, लेकिन उसे चलाने के लिए डीजल की व्यवस्था नहीं की। पंचायत ने जनरेटर और बोर ग्रामीणों के भरोसे छोड़ रखा है। ग्रामीणों के पास डीजल की कोई व्यवस्था नहीं। इसलिए पीडीएस दुकान से रसोई व घर में उजाले के लिए मिलने वाली केरोसिन से जनरेटर को चला रहे हैं। पंचायत ने जनरेटर व बोर चलाने के लिए एक युवक जरूर तैनात कर रखा है। यह युवक बोर पर पानी लेने आने वाले हर आदिवासी परिवार से एक-एक पौआ केरोसिन लेता है, उसके बाद ही बोर से पांच बर्तन पानी भरे जाते हैं। रोज सुबह 10 बजे बोर चलाने का समय है। उससे पहले ही आदिवासी परिवार केरोसिन से भरी शराब बोतलें (पौआ) लेकर लाइन में लग जाते हैं। यहां पानी लेने वहीं परिवार जाता है जो साथ में केरोसिन लेकर जाए।
कराहल ब्लॉक के कलमी गांव की हालत तो इससे भी खराब है। यहा का बोर भी जनरेटर से चलता है। यह जनरेटर दो दिन में एक बार चालू किया जाता है। यहां भी पंचायत ने जनरेटर को चलाने के लिए एक युवक तैनात कर दिया है। यह युवक बोर चालू होते ही एक परिवार को 7 बर्तन पानी ही भरने देता है। यहां के ग्रामीणों तो एक दिन के डीजल के पैसे देने को तैयार हैं, लेकिन पंचायत के सचिव-सरपंच राजी नहीं होते और दो दिन में सात बर्तन पानी एक परिवार को देते हैं। एक आदिवासी परिवार को घर में उजाले व रसोई के लिए 5 लीटर केरोसिन पीडीएस दुकान से मिलती है। भीमलत गांव के आदिवासी इस केरोसिन का उपयोग चूल्हे या फिर चिमनी की बजाय जनरेटर के लिए करते हैं। कई परिवारों का कहना है कि केरोसिन आधे महीने भी नहीं चल पाती। इसके बाद आस-पास के गांवों में जाकर आदिवासी परिवारों से 35 रुपए लीटर में केरोसिन खरीदते हैं। उससे जनरेटर चलता है। जल संकट के चलते यहा मवेशी विलुप्त हो रहे है और पानी नहीं मिलने के कारण गांव के लोग आठ-आठ, दस-दस दिन में तो नहाते हैं। ऐसी स्थिति में मवेशियों को पीने का पानी कहां से लाएं। गांव में ऐसे कई लोग हैं जो रोज न नहां पाने के कारण चर्मरोग से बीमार हो गए हैं।