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राज्य के मानसून सीजन की ही बात करें तो सतझड़ (सात दिन तक लगातार रिमझिम बारिश) अब बीते दौर की बात हो चली है। इसकी जगह कम समय में मूसलाधार बारिश ने ले ली है। यही नहीं, कहीं सूखा तो कहीं बाढ़ सरीखे हालात पैदा हो रहे हैं। दो दशक पहले तक राज्य में मानसून सीजन में हफ्तेभर तक बारिश की झड़ी लगी रहती थी। एक रिपोर्ट के मुताबिक सतझड़ के दौरान 188 घंटे की संयमित बारिश धरती को तरबतर करने के साथ ही भूजल भंडार को समृद्ध करती थी। धीरे-धीरे इसमें कमी आती चली गई और पिछले चार-पांच सालों के दरम्यान तो तीनदिन तक रहने वाली वर्षा की झड़ी भी गायब हो चली। आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो वर्षभर में उत्तराखंड में 1580.8 मिमी बारिश होती है, जिसमें मानसून सीजन (जून से सितंबर तक) का योगदान1229.2 मिमी है। प्रतिवर्ष औसतन यह बारिश राज्य को मिल रही है, लेकिन इसके पैटर्न में बदलाव आया है। झड़ी के स्थान पर कम समय में अधिक बारिश हो रही है। जाहिर है, इससे दिक्कतें भी बढ़ी हैं। विशेषज्ञों के अनुसार वर्षा के पैटर्न में बदलाव की वजह ग्लोबल वॉर्मिंग है।

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