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  • राम मंदिर के बाद बीजेपी-संघ का हिंदू राष्ट्र की दिशा में अगला कदम, संसद में नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 पेश करने की तैयारी पूरी
  • December 05, 2019
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    क्या नागरिकता संशोधन विधेयक हिंदू राष्ट्र के दरवाजे पर दस्तक है ? 

            अभी एनआरसी की आग ठंडी भी नहीं हुई थी कि कैब यानि नागरिकता संशोधन विधेयक संसद में पेश किया जाने वाला है. ये विधेयक लोकसभा और राज्यसभा से संख्याबल के आधार पर पारित भी हो जाएगा. राज्यसभा में भी बीजेपी के लिए पारित कराना कोई मुश्किल काम नहीं है. अहम बात ये है कि अयोध्या मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद मुस्लिम समाज ने धीरज और देशप्रेम का परिचय दिया औऱ कहीं से भी कोई अप्रिय घटना नहीं सुनने में आई. समझा ये गया कि अब हिदू-मुस्लिम औऱ पाकिस्तान जैसे मुद्दों की राजनीति से देश को निजात मिल जाएगी. लेकिन ये विधेयक उस राजनीतिक के बाद की कड़ी का सूत्रधार बनने जा रहा है. क्योंकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परम वैभव का लक्ष्य हिंदू राष्ट्र है. और ये कदम उसी दिशा में बढ़ते नज़र आ रहे हैं.

       ये विधेयक बांग्लादेश, पाकिस्तान, और अफगानिस्तान के हिंदू, सिक्ख, बौद्ध, जैन, पारसी औऱ ईसाईयों यानि गैर-मुस्लिम 6 धर्मों के शरणार्थियों को बगैर वैध दस्तावज़ों के भारत में नागरिकता प्रदान करने की बात करता है.संसद में विधेयक रखे जाने से पहले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने झारखंड की चुनावी रैली में अगले लोकसभा चुनाव पूर्व पूरे देश में एनआरसी लागू करने की बात दोहरा कर बीजेपी की मंशा साफ कर दी. अहम बात ये है कि जब सरकार इस विधेयक को पेश करने की तैयारी कर रही थी तो पूर्वोत्तर के 12 सांसद संसद परिसर में इसके विरोध में प्रदर्शन कर रहे थे. इस बिल का सत्तारूढ़ एनडीए के घटक दल भी विरोध कर रहा है. असम गण परिषद के अलावा एनपीपी यानि नगा पिपुल्स फ्रंट भी विधेयक का मुखर रूप से विरोध जता रहा है.

        उधर पूर्वोत्तर में एनआरसी के बाद नागरिकता संशोधन विधेयक का भी तीखा विरोध एक बार फिर तेज़ हो गया है. बीजेपी के इस महत्वाकांक्षी विधेयक ने इन राज्यों में भय का माहौल बना दिया है. पूर्वोत्तर वासियों को सांस्कृतिक, भाषाई विरासत के मिटने का खतरा नज़र आ रहा है. उनका मानना है कि बांग्लादेश से आने वाले हिंदू शरणार्थियों की वजह से वो अपने ही प्रदेश में अल्पसंख्यक हो जाएंगे और उनके आर्थिक हित प्रभावित होंगे . इसे 1985 में हुए असम समझौते के उल्लंघन के रूप में भी देखा जा रहा है. असम समझौते के तहत बांग्लादेश से 1971 के बाद आए सभी धर्मों के लोगों को देश से निकाले जाने का करार था. 

                दिलचस्प बात ये है कि एनआऱसी को मानने वाले दलों, नागरिक समूहों में भी नागरिकता संशोधन विधेयक को भारी नाराज़गी है. उनका कहना है कि इस बिल के पारित होने से एनआरसी की प्रक्रिया बेमानी हो जाएगी.

               असम के दो प्रमुख विश्वविद्यालयों के छात्रों ने नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का परिसर में प्रवेश वर्जित कर दिया है. लेकिन पश्चिम बंगाल में हालिया उपचुनाव में मिली करारी हार से तिलमिलाई बीजेपी राज्य में सरकार बनाने का भरोसा हो चला है. 

              नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 नागरिकता अधिनियम, 1955 के प्रावधानों में बदलाव के साथ पेश किया गया है. अब इन शरणार्थियों को नागरिकता हासिल करने के लिए 11 साल इंतेज़ार नहीं करना पड़ेगा. इन्हें पांच साल में देश की नागरिकता देने का प्रावधान रखा गया है.

             दरसल असम में एनआरसी लागू होने के बाद भारतीय जनता पार्टी को समझ में आया कि एनआऱसी से मुसलमानों के साथ हिंदू भी प्रभावित हो रहे हैं. जिससे देश को बांटने की रणनीति नाकाम हो रही है. लिहाज़ा सर्वोच्च न्यायालय की देखरेख में एनआरसी पर अमल का ही विरोध शुरू कर दिया. उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त एनआरसी कोऑर्डिनेटर प्रतीक हजेला ने एनआरसी के अमल की प्रक्रिया में भारी गड़बड़ी की है. यहां फिर बीजेपी ने मुखौटा लगा लिया. केंद्रीय स्तर पर एनआरसी पर गाल बजाने का काम जारी रखा तो प्रदेश के स्तर पर बीजेपी नेता एनआरसी पर दोगली बातें करते रहे. लोगों को भरमाया गया कि बीजेपी इस पर अमल नहीं करेगी. लोगों को बरगलाने के लिए असम के ताकतवर मंत्री हिमंता बिस्वशर्मा ने केंद्र सरकार से मांग भी कर डाली कि एनआरसी को रद्द किया जाए. लेकिन बीजेपी इसका पूरे देश के स्तर पर राजनीतिक लाभ उठाना चाहती रही है. लिहाज़ा बिस्वशर्मा की बात अनसुनी कर दी गई. साथ ही बीजेपी शासित कई राज्य सरकारों औऱ बीजेपी इकाईयों से इसे लागू किए जाने की मांग उठवा कर ध्रुवीकरण करने की है.

           दरसल पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के खिलाफ राम के नाम पर हिंसक प्रदर्शनों का सहारा लेकर पूरे देश में मुस्लिम तुष्टिकरण और हिंदू विरोध का मुद्दा उछाला जा रहा है. यहां तक कि आर्थिक मंदी, बेरोज़गारी, महंगाई की मार झेल रही जनता को बहकाने के लिए हिंदुत्व के एजेंडे से जुड़े कानून औऱ नीतियां बनाने पर ज़ोर दिया जा रहा है.

           लेकिन पूर्वोत्तर के सामाजिक औऱ राजनीतिक दल नागरिकता संशोधन विधेयक का खुल कर विरोध करने में जुट गए हैं. असम के अलावा अरुणाचल, नगालैंड, मेघालय, मणिपुर और मिज़ोरम में भी विरोध प्रदर्शन किए जा रहे हैं. पूर्वोत्तर के छात्रों ने नेसो यानि नॉर्थ-ईस्ट स्टूडेंट ऑर्गेनाईज़ेशन की अगुआई में अपना विरोध जताया है तो अभ जनजातीय समूहों ने भी एक साझा मंच बना कर विरोध शुरू कर दिया है.

          मुस्लिम घुसपैठियों को बसा कर देश में वोटबैंक बनाने का आरोप बीजेपी अरसे से कांग्रेस पर लगाती रही है. दशकों से जारी इस धुंआधार प्रचार से हिंदू समाज का ध्रुवीकरण करने में बीजेपी कामयाब रही है. अब प़ड़ोसी देशों में बसे हिंदू, सिक्ख, बौद्ध, पारसी, जैन और इसाई शरणार्थियों को बगैर वैध कागज़ात के नागरिकता देने की कोशिश का उतना विरोध नहीं हो रहा है जितना इस बिल को मुस्लिम विरोधी होने का आरोप लग रहा है. पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों का मानना है कि न सिर्फ बांग्लादेश बल्कि दूसरे देशों से भी इन शरणार्थियों का आना जारी रहेगा, जिसका बोझ सामाजिक संतुलन और आर्थिक संसाधनों पर पड़ेगा. हालांकि बीजेपी सरकार ने भरोसा दिया है कि एक जनवरी, 2014 के पहले आए शरणार्थियों को ही इस रियायत का फायदा दिया जाएगा. लेकिन लोग जानते है कि 1971 के बजाय अब 2014 की तय की जा रही मियाद भी उनके हितों के खिलाफ है. इसी सिलसिले में हाल ही में नेडा यानि नॉर्थ-ईस्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट के एक आय़ोजन में पूर्वोत्तर के मुख्यमंत्रियों ने अमित शाह के सामने व्यथा-कथा रखी थी. सरकार ने भरोसा दिया है कि इससे मूल निवासियों के अधिकारों पर कोई असर नहीं पड़ेगा औऱ  ना ही इन राज्यों को मिले विशेषाधिकारों पर. इन नागरिकों को भी अंदरूनी इलाकों में जाने के लिए इनर परमिट लेना होगा. राज्य सरकार को इनर परमिट देने संबंधी फैसले का अधिकार होगा.

          नागरिकता संशोधन विधेयक गैर मुस्लिम शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देने की बात करता है. जबकि अनुच्छेद 14 भारतीय नागरिकों को कानून के सामने समानता की गारंटी देने की बात करता है. वहीं अनुच्छेद 15 धर्म, मूलवंश,जाति, लिंग, जन्मस्थान, या इनमे से किसी एक आधार पर भेदभाव पर रोक लगाता है. एनआरसी और कैब को अनुच्छेद 21 के उल्लंघन के रूप में भी देखा जा रहा है. अनुच्छेद 21 जीवन का मौलिक अधिकार है. दिल्ली हाई कोर्ट ने इसी साल ऐसे ही एक मामले में एक पाकिस्तानी महिला को अपने बच्चों और पति के साथ रहने के अधिकार को अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का ही अंग माना. खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि पति और बच्चे भारतीय नागरिक हैं ऐसे में पाकिस्तानी महिला नौशीन नाज़ को देश से निर्वासित करने से तीन भारतीय नागरिकों के अधिकार प्रभावित होंगे. वहीं सुप्रीम कोर्ट ने भी एक मामले में कहा था कि अनुच्छेद 21 का दायरा बहुत व्यापक है. कोर्ट ने किसी व्यक्ति की जांच के एक मामले में आदेश दिया था कि किसी जांच एजेंसी को पक्षपातपूर्ण तरीके से जांच करने की अनुमति नहीं दी जा सकती. ये अनुच्छेद 21 की मूल भावना का उल्लंघन है.

           अवैध नागरिकों को बाहर करने और गैर मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता देने की इन व्यवस्थाओं को संविधान विरोधी माना जा रहा है. इसे अवैध प्रवासियों की परिभाषा बदलने की साज़िश के रूप में भी देखा जा रहा है. धार्मिक आधार पर नागरिकता दिए जाने के प्रावधान का कांग्रेस और ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट समेत कई दल विरोध कर रहे हैं.

            इस विधेयक को देश में दरार डालने के लिए भारतीय जनता पार्टी का कोई गुप्त एजेंडा नहीं है, बल्कि इसे खुला खेल फरुक्खाबादी समझा जा रहा है. बीजेपी की हिंदुत्ववादी अवधारणा भारतीय संस्कृति औऱ समाज की विविधता और बहुलता के खिलाफ है. ये सांप्रदायिक लोगों का राजनीतिक हिंदूत्व है जिस प्रकार फिरकापरस्त सियासत मुस्लिम लीग या एआईएमआईएम को करते देखा जा सकता है. 

          जम्मू-कश्मीर में धारा-370 खत्म करने से उत्साहित बीजेपी सरकार अब हिंदू बहुसंख्यकवाद राह पर खुले आम चल निकली है. अब हिंदू ध्रुवीकरण के बाद लोकतंत्र और बहुसंख्यकवाद में बहुत फर्क नही रह गया, जिस प्रकार लोकतंत्र और तानाशाही में कोई अंतर नज़र नहीं आ रहा है. न्याय व्यवस्था भी आस्था को अहम आधार मान कर महत्वपूर्ण मुद्दों पर फैसले दे रही है. ऐसे में आस्था के आधार पर नागरिकता तय करने के कारण ये विधेयक पर संविधान विरोधी होने का आरोप लग रहा है. 

          दरसल फिरकापरस्त ताकतें देश को आपस में बांट लेना चाहती हैं, ताकि इस देश में विश्वबंधूत्व औऱ सर्वधर्मसमभाव की धारा हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो जाए. इसीलिए देश की पंथनिरपेक्षता की जड़ों में मट्ठा डाला जा रहा है. धार्मिक आधार पर नागरिकता देने के इस विधेयक को अदालत से मान्यता ना मिलने पर संविधान की मूल प्रस्तावना में उल्लिखित पंथनिरपेक्षता शब्द को लेकर राजनीति तेज़ होने के आसार हैं. प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हिंदू राष्ट्र बनाने की बीजेपी की मंशा के तहत आने वाले वक्त में पंथनिरपेक्ष शब्द को हटाने की कोशिश से इंकार नहीं किया जा सकता. 

            वहीं सामाजिक-सांस्कृतिक और धार्मिक तौर पर भी सनातन धर्म के वैश्विक रूप-स्वरूप को तहस-नहस करने की कोशिश हो रही है. सनातन धर्म की उदारता को नष्ट कर सेमेटिक धर्म बनाने की ये साज़िश यहूदियों से सीखी गई है. इज़रायल से नज़दीकियां महसूस करने वाली बीजेपी यहूदी चिंतन, राजनीति और तौर-तरीकों से बहुत प्रभावित है. नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 के पीछे भी उस इज़रायली कानून कानून की प्रेरणा है जो दुनिया के किसी भी कोने में रह रहे यहूदियों को इज़रायल की नागरिकता का प्रावधान करता है. समझा जा रहा है कि अगर बीजेपी को अपने हिंदुत्ववादी एजेंडे को लागू करने के लिए भारत के किसी भी हिस्से को गजा पट्टी बनाना पड़ जाए तो उसे कोई हिचक नहीं होगी. वहीं अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में बीजेपी के राजनीतिक एजेंडे के मद्देनज़र दक्षिण एशिया में अमेरिका-इज़रायल धुरी के साथ गठजोड़ की कोशिश के रूप में भी समझा जा रहा है. बीजेपी अपनी राजनीतिक विचारधारा को जायज़ और सम्मति पाने के लिए दुनिया भर के दक्षिणपंथी राजनीतिक दलों और उनके प्रतिनिधियों के साथ मेलजोल बना कर एक समझ विकसित करने में जुटी हुई है.

     

     
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